गबन और भ्रष्टाचार में लिप्त चर्चित आईएफएस अधिकारी को क्लीनचिट देने की तैयारी -थोक में तबादले पोस्टिंग के सक्रिय एजेंट ..

गबन और भ्रष्टाचार में लिप्त चर्चित आईएफएस अधिकारी को क्लीनचिट देने की तैयारी -थोक में तबादले पोस्टिंग के सक्रिय एजेंट .... 



अलताफ हुसैन


रायपुर (फॉरेस्ट क्राइम न्यूज़) छग वन विभाग अब अधिकारियों और कर्मचारियों के भ्रष्टाचार करने का चारागाह बन गया है यहां केवल अधिकारी कर्मचारी भिन्न भिन्न प्रकार के दांव पेंच अपना कर भ्रष्टाचार,गड़बड़ घोटाले, एवं कार्यों में अनियमितताएं कर किस प्रकार विभाग और शासन के राजस्व को आर्थिक क्षति पहुंचाया जाए इसके अवसर तलाशे जाते है अब बात चाहे विभाग के निर्माण कार्यों को लेकर हो तो कई स्थानों पर परियोजनाओं पर कार्य तो नही हुआ है परन्तु कागजो में लाखों ही नही बल्कि करोड़ों के निर्माण कार्य हो चुके है या फिर वन क्षेत्रों मे पड़त भाटा भूमि पर मिश्रित प्रजाति प्लांटेशन को लेकर ही बात क्यों न हो जहां मिट्टी से लेकर दवा,खाद,पौधे क्रय से लेकर रोपण कार्यों में श्रमिकों के भुगतान का मामला हो या फिर थिनिंग के नाम पर वनों के टेढ़े मेढ़े काष्ठों के पातन करने के पश्चात उसे काष्ठागर में नीलामी कार्य हो या फिर तेंदूपत्ता संग्रहण से लेकर, तेंदू पत्तों,के विक्रय का मामला ही क्यों न हो हर जगह भ्रष्टाचार रूपी दानव अपना मुंह फाड़े खड़ा हुआ है यदि इस ओर सूक्ष्मता से आंकलन किया जाए तो ज्ञात होगा कि छग वन विभाग की एक बहुत बड़ी राशि का हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ जाता है साथ ही राज्य शासन को भी करोड़ों के राजस्व की हानि होती है देखा जा रहा है कि भ्रष्टाचार अनियमितता गड़बड़ घोटाले या अन्य निर्माण सामग्री क्रय, विक्रय में उच्चस्तर के आई एफ़ एस अधिकारीयों के पौ बारह हो रहे है एक प्रकार से वे लालम लाल हो रहे है फिर भी राज्य सरकार के लचीले कानून व्यवस्था के चलते ऐसे भ्रष्ट लिप्त अधिकारी पद पॉवर और पैसों के दम पर समस्त जांच,कमेटी एवं सरकारी एजेंसीयां भ्रष्टाचारी अधिकारीयों के समक्ष दण्डवत हो जाती है यही कारण है कि विभागीय स्तर पर जांच एवं आर्थिकी अपराध से जुड़ी सरकारी जांच एजेंसियों के द्वारा किए जाने वाले जांच में दो राय होने के कारण ऐसे लिप्त अधिकारी कर्मचारी आज भी साफ सुथरे बच निकलते है निसंदेह यह यक्ष प्रश्न विभाग और शासन के समक्ष एक सवाल बन कर खड़ा हुआ है जिस पर मंथन आवश्यक हो जाता है ऐसे ही भ्र्ष्टाचार कर विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करने वाले आई एफ़ एस अधिकारी को बानगी के रूप में लिया जा सकता है जिनके भ्रष्ट काले कारनामें जगजाहिर है फिर भी जांच के नाम पर यह जानकारी आ रही है कि उन्हें क्लीनचिट दिया जा रहा है उल्लेखनीय है कि भाजपा शासनकाल में सुकमा वन क्षेत्र में बहुचर्चित और भ्रष्टाचार से जुड़ा प्रकरण सामने आ चुका है जिसमे एक चर्चित आई एफ़ एस अधिकारी के सरकारी आवास पर स्विमिंग पुल निर्माण को लेकर जांच के नाम पर हुए खेल में विभागीय जांच में तो उन्हें दोषी बताया गया है तो दूसरी ओर ई ओ डब्ल्यू के द्वारा जांच में कथित आई एफ़ एस अधिकारी को निर्दोष साबित कर क्लीन चिट देने आमादा है बताया जाता है कथित चर्चित अधिकारी के द्वारा वर्ष 2012 में तेंदूपत्ता का सीधा विक्रय आंध्रप्रदेश के एक व्यापारी को कर दिया था जिसकी शिकायत उसके द्वारा विभाग में की थी तब जाकर मामले का भंडाफोड़ हुआ जिसपर विभाग द्वारा जांच कराई गई तो समस्त आरोप सत्य पाए गए जो सीधे सीधे शासकीय राशि का गबन का मामला बनता है फिर भी इस ओर विभाग द्वारा कोई सार्थक कार्यवाही नही हुई परन्तु मामला ई ओ डब्ल्यू में पहुंचा अब यह बात की चर्चा बड़े जोर शोर से विभाग में की जा रही है कि वही सरकारी एजेंसी कथित रूप से भ्रष्टाचार गड़बड़ में संलिप्त अधिकारी को निर्दोष मानते हुए उन्हें क्लीन चिट देने शासन के सामने फाइल अनुमोदन के लिए भेजा गया है इस संदर्भ में ई ओ डब्ल्यू के वरिष्ठ अधिकारी से चर्चा कर वस्तुस्थिति ज्ञात करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने अवकाश की बात कहते हुए संपर्क विच्छेद कर दिया इसी प्रकार एक अन्य प्रकरण भी सामने आया है जिसमे थोक में तबादले पोस्टिंग के नाम पर एक बड़ा खेल क्षेत्र में सक्रिय एजेंटों द्वारा खेला जा रहा है जिसके तार स्थानीय विधायक से जुड़े होने की बात भी सामने आ रही है 


 


   संपूर्ण विस्तृत प्रकरण सुकमा बस्तर के बहुचर्चित स्विमिंग पूल से जुड़ा हुआ है भाजपा शासनकाल में जहां आई एफ़ एस अधिकारी राजेश चंदेल द्वारा सरकारी आवासीय परिसर मे लगभग सत्तर लाख रुपये का एक स्विमिंग पूल तैयार करवाया गया था विलासता पूर्ण जीवन व्यतीत करने वाले डीएफओ राजेश चन्देले के उक्त कृत्य जैसे ही समाचार पत्रों के माध्यम से जनमानस के समक्ष आया बताया जाता है कि वैसे ही उनके द्वारा स्विमिंग पूल पटा दिया गया चर्चा इस बात को लेकर भी रही कि सरकारी आवासीय परिसर में स्विमिंग पूल का निर्माण चंदे के पैसों से किया गया था जबकि विचारणीय पहलू यह है कि कोई भी चंदा वह भी वन विभाग के अधिकारी को लाखों रुपयों की सूरत में क्यों देगा ? वह भी एक डीएफओ के नहाने के लिए ? जबकि ज्ञात तो यह भी हुआ है कि जब आई एफ़ एस अधिकारी विलासता पूर्ण जीवन जी रहे थे तात्कालिक समय सुकमा क्षेत्र में लोग पानी की बूंद बूंद के लिए तरस रहे थे वही उनके संबन्ध में ज्ञात यह भी हुआ है कि जब वे मरवाही डी एफओ थे उस समय एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा जांच की गई थी तथा राज्य सरकार से उनके ऊपर अभियोजन चलाए जाने की मांग भी की गई थी परन्तु लंबे समय तक विवादों में रहने वाले आई.एफ.एस. राजेश चंदेल को किसी प्रकार की कोई भी कार्यवाही का डर खौफ ही नही था जबकि उनके सन्दर्भ में यह बात भी चर्चा में आई थी कि वर्ष 2012 में डॉ रमन सिंह सरकार के कार्यकाल में 28 करोड़ का तेंदूपत्ता बगैर लिखा पढ़ी विभाग के संज्ञान में लाए बिना आंध्र प्रदेश के व्यपारी को बेच दिया था जिसकी शिकायत आंध्र प्रदेश के व्यापारी द्वारा किया गया था तदसंबध में छग वन विभाग द्वारा इसकी जांच की गई जांच में सारे आरोप सत्य पाए गए थे परन्तु विभाग द्वारा राजेश चंदेल पर कोई सारगर्भित कार्यवाही नही किया जा सका और जांच का दायरा ई ओ डब्ल्यू के समक्ष पहुंच गया अब अंदरखाने से ऐसा सुगबुगाहट मिल रहा है कि ऐसे भ्रष्ट अधिकारी पर ई ओ डब्ल्यू भी कुछ ज्यादा मेहरबान है तथा छनकर जानकारी मिल रही है कि ऐसे भ्रष्ट नौकरशाह राजेश चंदेल को ई ओ डब्ल्यू भी क्लीन चिट देने जा रहा है इस तारतम्य में ई ओ डब्ल्यू के वरिष्ठ अधिकारी से पुष्टि हेतु संपर्क किया गया तब उन्होंने भी चार दिन से व्यस्तता की बात कह कर संपर्क विच्छेद कर दिया अब सवाल उठता है कि आईएफएस राजेश चंदेल जिस पर विभागीय अनेक गंभीर मामले लंबित है जिन पर पूर्व में आर्थिक अन्वेषण ब्यूरो ने अनुपात से अधिक संपति रखने पर कार्यवाही की है ऐसे भ्रष्ट अधिकारी को ईओडब्ल्यू द्वारा क्लीन चिट देना (जैसा चर्चा की जा रही है) कहां तक उचित होगा ? जबकि विभागीय जांच पर उन्हें दोषी पाया जाना बताया गया था फिर ईओडब्ल्यू उन्हें किस आधार पर क्लीन चिट दे रहा है यह अनेक सन्देह उत्पन्न पैदा कर रहा है अंदर खाने से तो यह बात भी निकल कर सामने आ रही है कि ईओडब्ल्यू द्वारा प्रकरण में राजेश चंदेल को क्लीनचिट देने के लिए अनुमोदन हेतु फाइल शासन के पास भेज दिया गया है जो अब तक लंबित है वन विभाग कर्मचारी इस संदर्भ में लगातार खुसुर फुसुर कर रहे है तथा लिप्त वन अधिकारी पर होने वाली कार्यवाही के लिए उत्सुक है अब यदि फैसला लिप्त वनाधिकारी के पक्ष में आता है तो निसंदेह उनके क्लीन चिट के पीछे की कहानी स्पष्ट हो जाएगी जबकि वन विभाग भी उन पर विभागीय कार्यवाही करने स्वतंत्र है विभाग के समक्ष तो सारे साक्ष्य मौजूद है फिर भी वह अपने हाथ पीछे क्यो रखे हुए है यह भी लोगों के सामने सवाल खड़े किए हुए है वही अन्य दूसरा प्रकरण छग वन विभाग में भारी पैमाने पर ट्रांसफर पोस्टिंग से जुड़ा बताया जा रहा है जिसमे पांच से पन्द्रह लाख रुपयों की बड़ी राशि का लेनदेन हो रहा है ट्रांसफर पोस्टिंग की संख्या पचास से ऊपर बताई गई है मजे की बात यह है कि राशि लेकर ट्रान्सफर और पोस्टिंग का खेल तो खेल लिया गया है मगर अब तक राज्य शासन से फाइल अनुमोदित नही हुई है यदि शासन प्रस्तुत फाइल में आपत्ति कर उसे रिजेक्ट करती है तो जितने भी अधिकारी कर्मचारी पदस्थ अथवा पोस्टिंग किए गए है सारे के सारे कर्मचारियों के पैरों के नीचे से धरती खिसक जाएगी तथा वे इधर के रहेंगे न उधर के इस संदर्भ में जानकारी मिली है कि महासमुंद क्षेत्र के एक विधायक के कुछ एजेंट तबादला पोस्टिंग हेतु सक्रिय है और पोस्टिंग तबादला भी महासमुंद, बलौदाबाजार, बार नवापारा क्षेत्र का ही है जो ऐसे अधिकारी कर्मचारियों को मनचाहे मलाईदार स्थान पर तबादला या पोस्टिंग करवाने के एवज में पांच लाख से पन्द्रह लाख रुपये तक लेने की बात सामने आ रही है ज्ञात हुआ है कि यह तबादले पोस्टिंग की फाइल भी अब तक शासन द्वारा अनुमोदन नही किया गया है जबकि कुछ कर्मचारी तबादले और पोस्टिंग से गदगद है विभागीय जानकारों का कथन है कि यदि शासन के मंशानुरूप यदि फाइल में कुछ कमोबेश कमी पाई जाती है तथा फाइल का अनुमोदन नही किया गया तब ऐसे तबादला पोस्टिंग वाले कर्मचारी अपना सिर पीटते रह जाएंगे बहरहाल, अब देखना होगा कि ऐसे तबादला पोस्टिंग वाले कर्मचारियों के लिए ऊंट किस करवट बैठता है


अंत मे तेंदूपत्ता यूनियन के अधिकारियों कर्मचारियों के आवागमन हेतु भाजपा शासन काल में बड़ी संख्या में किराए पर लगाए गए चार पहिया वाहन अब पूरी तरह कंडम स्थिति में पहुंच गए है मगर तेंदूपत्ता यूनियन कर्मचारी है कि वर्षों से यूनियन में लगाई गई गाड़ियों का मोह छोड़ नही पा रहे है जबकि बताया जाता है कि विगत दस पन्द्रह वर्षों से गाड़ी भी जर्जर खटारा अवस्था मे पहुंच चुकी है तथा वाहन मालिक है कि खटारा स्थिति में भी उसे तेंदूपत्ता यूनियन में संलग्न किए हुए है जबकि दस पन्द्रह वर्षों में गाड़ी मालिकों ने लाखों की कमाई अब तक कर चुके है या फिर कमीशन के चक्कर मे अधिकारी कर्मचारी गाड़ी छोड़ना नही चाहते ?