बस्तर की आर्थिक संपन्नता की प्रतिखा चिकमाला

बस्तर की आर्थिक संपन्नता की प्रतीक है चिकमाला.....!


बस्तर के इतिहास को खंगालने से पता चलता है कि बस्तर में कभी लेन देन के लिये सोने के सिक्के चलते थे। तीसरी चौथी सदी के नल वंशी शासकों से लेकर ग्यारहवी सदी के नाग शासकों ने लेन देन के लिये स्वर्ण सिक्के चलवाये। नलवंशी राजा वराहदत्त, अर्थपति के सोने के सिक्के मिले है वहीं नाग राजाओं में जगदेकभूषण और सोमेश्वर देव के स्वर्ण सिक्के प्राप्त हो चुके है। बस्तर के सिक्के बिलासपुर और ओडिसा के कुछ जगहों से प्राप्त हो चुके है। स्वर्ण सिक्के चलन में होना कोई मामूली बात नहीं है। यह प्राचीन बस्तर की आर्थिक संपन्नता को दर्शाता है। 


सिक्को की रूपया माला तो लगभग सभी ने देखी होगी है किन्तु  बस्तर में महिलायें स्वर्ण सिक्कों की एक माला पहना करती थी। जिसमें चारों ओर पतली गोलाकार डंडियों की माला होती थी एवं बीच में एक स्वर्ण सिक्का पदक के रूप में होता था। वह चलन आज से 50 साल पहले तक था। समय के साथ वे सिक्के अब प्रतीकात्मक हो चुके है। अब सोने के पतले गोलाकार सिक्के बनाकर माला पहनी जाती है। इस माला को यहां चिकमाला कहा जाता हैं। चिकमाला सिक्कामाला की ही अपभ्रंश है। सिक और चिक में बोली का ही फर्क है। चिकमाला बस्तर की आर्थिक संपन्नता की प्रतीक है जो आज भी यहां की महिलाओं के गले में पहनी देखी जा सकती है।