रायपुर वन मण्डल के अंतर्गत आरंग परिवृत का एक ग्राम जहां अधिकांश व्यक्ति करते है अवैध कष्ठ की तस्करी - पेड़ कटते रहे और वन विभाग सोता रहा
अलताफ हुसैन
रायपुर विगत दिनों समाचार पत्र के माध्यम से छग प्रदेश वन विभाग के पीसीसीएफ एवं मुखिया राकेश चतुर्वेदी साहब ने एक बयान दिया था जिसमे यह स्पष्ट रूप से उल्लेख था कि प्रदेश के वन क्षेत्रों में यदि अब कटाई मामले में कोई भी प्रकरण सामने आता है तो इसकी संपूर्ण जिम्मेदारी उक्त वन क्षेत्र के परिक्षेत्र अधिकारी एव बीट गार्ड की होगी तथा उन पर विभागीय सख्त कार्यवाही होगी परन्तु उनके द्वारा जारी उक्त आदेश को अब भी वन कर्मचारी अधिकारी संवेदना पूर्वक नही ले रहे है बल्कि अवैध कटाई प्रकरण में और भी ज्यादा इज़ाफ़ा हो गया है वह भी एक दो पेड़ों का नही बल्कि क्षेत्र के एक ही ग्राम क्षेत्र से लगभग तीन सौ से ऊपर परिपक्व गोले जो मिश्रित प्रजाति के कहे जा रहे है उसे ट्रेक्टर ट्राली के माध्यम से परिवहन किया जा चुका है वही उतनी ही बड़ी संख्या में अवैध कटाई कर काष्ठ परिवहन किया जाना अभी शेष है जबकि कहे जा रहे आरंग परिवृत में लगभग तीन सटे ग्राम का नाम बड़ी प्रमुखता से सामने आया है जहां पर बड़ी मात्रा में ग्रामीणों द्वारा अवैध कटाई कर काष्ठों की तस्करी अनवरत जारी है वहां से करोड़ों रुपये के काष्ठ की तस्करी होने की बात भी कही जा रही है संभवतः काष्ठ तस्करी के मामले में यह प्रथम अवसर देखने को मिल रहा है जहां पर ग्राम के अधिकांश घर के व्यक्ति ऐसे अवैध काष्ठ तस्करी में सम्मिलित है मजे की बात यह है कि वन विभाग कर्मचारियों द्वारा उक्त ग्राम से एक भी अवैध काष्ठ तस्करी का प्रकरण नही बनाया इससे यह तो स्पष्ट ज्ञात होता कि संपूर्ण ग्राम में किए जाने वाले अवैध काष्ठ तस्करी में वन विभाग की भूमिका संदिग्ध है और इनके ही सहयोग एव सहभागिता से क्षेत्र में अवैध कटाई कर काष्ठों का विक्रय बदस्तूर जारी है एक प्रकार से यह कथन कि सैय्या भयो कोतवाल तो अब डर काहे का वाली उक्ति अब यहां सार्थक होती नजर आ रही है रायपुर से 40 एव आरंग से लगभग 15 किलोमीटर के दूरी पर है ग्राम फरफौद है जो आरंग विकास खण्ड के अंतर्गत आता है ग्राम फरफौद तो वैसे कृषि प्रधान क्षेत्र है पर यहां बबूल,प्रचुर मात्रा में है जिसे वन विभाग मुताबिक बबूल काष्ठ एवं कटाई को फ्री होल्ड कर रखा है मगर बबूल की आड़ में मिश्रित प्रजाति के काष्ठों की भी तस्करी जारी है बबूल कटाई को फ्री होल्ड के नाम पर ही इन्हें पूर्णतः खुला छोड़ दिया गया है जिसका लाभ क्षेत्र के कृषक वर्ष भर उठाते है वह भी जलाऊ के नाम पर पतले आड़े टेढ़े टहनियां नही बल्कि परिपक्व गोले जिसमे फर्नीचर से लेकर चौखट तक निर्माण किए जाते है उसका पातन कर राजधानी में विक्रय किया जाता है जिसमे करोड़ों का खेल हो जाता है जबकि प्रदेश के दूसरे क्षेत्रों में कृषकों द्वारा इसी बबूल कटाई करने पर वन कानून के तहत सरपंच सहित राजस्व तहसीलदार से अनुमति लेने और वन अधिनियम की पेचेदगी से उनका भय दोहन कर उनसे वन कर्मचारियों द्वारा मोटी रकम वसूली करने के भी बहुत से प्रकरण प्रकाश में आ चुके है परन्तु विभाग के नियम कानून की दोहरी नीति से अब तक आमजन पसोपेश में है कि बबूल वृक्षों की कटाई वस्तुतः वैधानिक है या अवैधानिक है परन्तु यह तो सर्वविदित हो चुका है कि बबूल वृक्षों की आड़ में एक बहुत बड़ा खेल वन विभाग और तस्करों के मध्य खेला जा रहा है जो पातन कर्ता के निजी भूमि,और राजस्व भूमि,के नाम पर खुले मैदान की आड़ में खेला जा रहा है जबकि बताया जाता है कि ग्राम फरफौद सहित आसपास के ग्राम क्षेत्रों में असंख्य बबूल कहुआ, शीशम, सागौन,बेर,सिरसा, अर्जुन,सहित भिन्न भिन्न प्रकार के परिपक्व वृक्ष की प्रचुरता भी है बबूल पेड़ के पातन के साथ साथ ही शीशम,कहुआ, बेर, अर्जुन,सागौन, सिरसा,साल के वृक्ष की कटाई भी विगत कई वर्षों से अनवरत जारी है यदि एक प्रकार से यह कहा जाए की फरफौद ग्राम के ग्रामीणों का मौसमी फसल के अलावा आय के संसाधन में अवैध कटाई और काष्ठ तस्करी पर ही यह ग्राम आश्रित है तो यह अतिशयोक्ति नही होगी क्योंकि फरफौद के प्रत्येक ग्राम गृह मे एक ट्रैक्टर ट्राली है जो आसपास के ग्राम क्षेत्रों से ठेके पर बबूल सहित अन्य मिश्रित प्रजाति के फलदार,औषधियुक्त पेड़ों की कटाई कर रायपुर के फाफाडीह,गुढ़ियारी,खमतराई, और बढ़ाई पारा जैसे बड़े आरा मिल के सॉ मिलर्स को सप्लाई कर दी जाती है जिनमे बेशकीमती काष्ठ भी बबूल की आड़ में सप्लाई हो रही है कटाई के तार अब ग्राम फरफौद तक ही सीमित नही बल्कि आसपास के अन्य ग्राम के ग्रामीण भी संलिप्त है जिनकी वर्ष भर आय के साधन के रूप में उपरोक्त मिश्रित प्रजाति काष्ठों की अवैध कटाई बताई जाती है इस सिलसिले में बताया जाता है कि क्षेत्र में अनेक लोगों ने जलाऊ लकड़ी का लाइसेंस बना रखा है जो संबंधित वन परिवृत के रेंजर द्वारा जारी किया गया है जो इनके सुरक्षा कवच बन गया है किसी के द्वारा पड़ताल करने पर वे लकड़ी टाल वाला जारी लायसेंस दिखा देते है परन्तु उसमे परिपक्व काष्ठ गोले क्रय आदि का कोई उल्लेख नही होता और न ही ऐसे लायसेंस धारकों के द्वारा कोई लकड़ी टाल संचालित होता है जबकि स्थायी स्तर पर काष्ठ विक्रय या लकड़ी टाल संचालन हेतु अपने जिले से संबंधित निगम अथवा शासकीय संस्थान द्वारा जारी गुमास्ता लायसेंस भी अनिवार्य होता है इसके साथ ही ,पर्यावरण विभाग भी एन ओ सी लायसेंस जारी करता है परन्तु यहां सारे नियम विरुद्ध जाकर केवल वन विभाग से लकड़ी टाल का लाइसेंस रख कर उसकी आड़ में पूरा ग्राम जलाऊ कष्ठ परिवहन के नाम पर विभागीय सहयोग से अन्य मिश्रित प्रजाति के बेशकीमती इमारती काष्ठों का दोहन कर रहा है इनके ऊपर वन अधिनियम के तहत कार्यवाही करने के नाम पर आज तक ग्राम के किसी भी व्यक्ति पर कोई कार्यवाही नही की गई है जबकि ज्ञात यह भी हुआ है कि प्रदेश सरकार के एक स्थानीय विधायक, मंत्री का वरद हस्त प्राप्त है वही क्षेत्र की पुलिस भी इनसे बंधी हुई है प्रत्येक थाना क्षेत्र इनके निर्गमन को लेकर मुस्तैद खड़ा रहता है भले ही इस वर्ष कोरोना काल को लेकर कुछ देरी से काष्ठों का परिवहन किया जा रहा है फिर भी पुलिस विभाग इनसे अच्छा खासा चढ़ावा वसूल करता है वही विभागीय वन अधिकारी कर्मचारियों को लेकर अपुष्ट समाचार मिल रहे है कि परिवृत में पदस्थ डिप्टी रेंजर से लेकर अन्य कर्मचारियों से इनकी अच्छी खासी सांठ गांठ है जो लाखों रुपये इनसे वसूल।कर रायपुर वन मण्डलाधिकारी से लेकर सीसीएफ तक रकम पहुंचाते है अब इस बात की पुष्टि तो नही हुई मगर यह बात स्वयं ग्राम वासियों द्वारा कही गई है वही पत्रकार इत्यादि के आगमन पर ग्राम वासियों स्थानीय मंत्री, द्वारा उनका साथ देने एवं ऊपर तक वन अधिकारियों को रकम पहुंचाने की बात कह कर उन्हें भी चलता कर देते है जिससे अधिकांश ग्राम वासियों द्वारा बड़े पैमाने पर हो रहे अवैध कटाई और तस्करी रैकेट का अब तक कोई भी मामला प्रकाश में नहीआ पाया जिसकी वजह से ये और निर्भय होकर अवैध कटाई को खुलेआम अंजाम दे रहे है बताते चले कि इसके पूर्व फॉरेस्ट क्राइम समाचार पत्र द्वारा ग्राम रसनी में लकड़ी टाल संचालक घनश्याम केशवानी द्वारा सड़क किनारे पड़े जलाऊ लकड़ी सहित बड़ी संख्या में मिश्रित प्रजाति के बड़े गोले होने की जनकरी का समाचार फॉरेस्ट क्राइम के वेब पोर्टल,और वेब न्यूज़ के माध्यम से जन मानस के सम्मुख प्रकाश में लाया गया था जिसमे यह शंका व्यक्त करते हुए स्पष्ट उल्लेख किया गया था कि लकड़ी टाल की आड़ में बड़ी मात्रा में काष्ठों का दोहन किया जा रहा है जिसके संबन्ध में डिप्टी रेंजर लोकनाथ ध्रुव को भी जानकरी दी गई थी परन्तु उनके द्वारा लकड़ी टाल संचालक घनश्याम केशवानी की पैरवी करते हुए लकड़ी टाल लाइसेंस होने की स्वयं जानकरी दी थी तथा बड़ी मात्रा में पड़े काष्ठ उसे निजी भूमिहार से क्रय कर लाया जाना बताया वही फॉरेस्ट क्राइम न्यूज़ ने इस बात को लेकर प्रमुखता से यह भी सवाल उठाया था कि काष्ठ के चट्टे जो काष्ठागार में मिल जाते है मगर जलाऊ लकड़ी टाल संचालक द्वारा परिपक्व बबूल सहित अन्य मिश्रित प्रजाति के गोले काष्ठों को स्वयं क्रय कर लाया जाना बताया गया यदि ऐसे लायसेंस के आधार पर ही काष्ठों का ग्राम स्तर पर स्वयं कटाई कर क्रय जारी रहा तो वन विभाग द्वारा प्रति वर्ष थिंनिंग के नाम पर वन क्षेत्रों से पातन कर लाए गए चट्टे बांस,बल्ली,और गोले काष्ठागर में संकलित कर नीलामी द्वारा काष्ठों का क्रय कौन और क्यों करेगा ? फॉरेस्ट क्राइम न्यूज़ में समाचार के प्रकाश में आने के पश्चात ग्राम रसनी के सड़क किनारे पड़े बेशकीमती गोले उठा लिए गए तथा बबूल के काष्ठों को यथावत छोड़ दिया गया वही इसके परिवहन की शंका भी राजधानी रायपुर के फाफाडीह,गुढ़ियारी,खमतराई स्थित बड़े आरा मिलर्स,सॉ मिलर्स बढ़ाई पारा के फर्नीचर निर्माताओ को विक्रय की बात कही गई थी जिस पर यकायक विश्वास नही हुआ था परन्तु जिस प्रकार फरफौद ग्राम में अब भी वहां बड़ी संख्या में परिपक्व मिश्रित भिन्न भिन्न प्रजाति के गोले पड़े है जिसका परिवहन अब भी बदस्तूर जारी है उससे तो यह ज्ञात होता है कि बगैर वन विभाग कर्मचारियों की मिली भगत,सांठ गांठ के चलते इतना बड़े पैमाने पर काष्ठों की तस्करी का किया जाना असंभव है अब सवाल यह उठता है कि आरंग परिवृत क्षेत्र में वन विभाग से सांठगांठ कर बड़े पैमाने पर हो रहे काष्ठों की तस्करी को लेकर अनेक सवाल उठ रहे है तथा वन विभाग के कार्यशैली को लेकर उंगली उठाई जा रही है वही प्रदेश के मंत्री का वरदहस्त प्राप्त होना और जैसा कि ग्रामीणों द्वारा वन अधिकारी कर्मचारियों से लंबी सैटिंग की बात कही जा रही है उससे ज्ञात होता है कि प्रदेश का वन क्षेत्र अब बिकुल सुरक्षित नही रह गया है अब देखना होगा कि प्रदेश के वन मंत्री मो.अकबर एव वन विभाग के मुखिया और प्रदेश पीसीसीएफ इस कटाई प्रकरण को लेकर आगे क्या कदम उठाते है ?