ग्राम रसनी लकड़ी टाल में परिपक्व बबूल काष्ठों की  बिक्री वन विभाग कर्मियों का अतिरिक्त आय का साधन बना इसलिए कार्यवाही करने से कतरा रहा

ग्राम रसनी लकड़ी टाल में परिपक्व बबूल काष्ठों की  बिक्री वन विभाग कर्मियों का अतिरिक्त आय का साधन बना इसलिए कार्यवाही करने से कतरा रहा


फॉरेस्ट क्राइम न्यूज/अलताफ हुसैन 



रायपुर छग प्रदेश में खरपतवार की भांति बहुतायत स्थिति में बबूल पेड़ प्राकृतिक रूप से उगते है यह पेड़ अनेक औषधि गुण सम्पन्न माना जाता है प्राचीन धार्मिक मान्यता यह भी है कि बबूल वृक्ष में साक्षात भगवान विष्णु का वास है यह वृक्ष जिस घर मे होता है वह घर धन धान्य से परिपूर्ण होता है बबूल के इतने गुण होने के बाद भी हमारे प्रदेश के वन विभाग की नज़रों में यह एक बेशरम झाड़ की तरह कहीं भी उगने वाला खरपतवार वृक्ष माना जाता है इसे अब तक औषधि अथवा इमारती कष्ठ की श्रेणी में नही रखा गया है बल्कि इसे प्रदेश में किसी भी आम व्यक्ति द्वारा काटा जा सकता है जिसके चलते काष्ठ माफ़ियाओं के पौ बारह हो रहे है और प्रदेश भर में बबूल वृक्ष की बड़ी बेरहमी से कटाई हो रही है ऐसा ही कटाई का एक मामला आरंग परिक्षेत्र के रसनी ग्राम के अंतर्गत मिला है जहां के स्थानीय निवासी घनश्याम केशवानी एव ईश्वर केशवानी व्यक्तियों द्वारा जलाऊ लकड़ी बिक्री के आड़ में परिपक्व बबूल वृक्ष की कटाई कर इमारती काष्ठ के रूप में रायपुर के व्यापारियों को विक्रय किया जा रहा है



स संदर्भ में लकड़ी टाल के संचालक घनश्याम नामक युवक से चर्चा की गई तो उसने इसे बेखौफ होकर आसपास ग्राम क्षेत्र के कृषकों से क्रय करना बताया जबकि यह भी विदित हो कि जलाऊ काष्ठ डिपो अथवा काष्ठागर से बकायदा क्रय किया जाता है विभाग जिसकी बकायदा टी पी जारी करता है परन्तु टाल संचालक द्वारा लायसेंस लेकर क्षेत्र के कृषकों से काष्ठ क्रय कर स्वयं राजधानी के व्यवसायियों को बिक्री की जा रही है और वह भी ट्रकों से जलाऊ काष्ठ डंप किया गया है जबकि उसके द्वारा परिपक्व बबूल काष्ठ विक्रय भी निर्भय होकर किया जा रहा है तथा उसे वन विभाग की किसी भी कार्यवाही का कोई भय नही दिखता जिससे लाइसेंसी बिक्री की आड़ में वन विभाग कर्मियों की मिलीभगत से इनकार नही किया जा सकता रसनी सड़क मार्ग में पड़े परिपक्व बबूल एव अन्य प्रजाति के काष्ठों की जानकारी एक अन्य ग्रामीण से लेने पर यह बताया गया कि अब तक पांच ट्रक से ऊपर काष्ठों का परिवहन रायपुर के व्यापारी के द्वारा किया जा चुका है जबकि अभी भी दो से तीन ट्रक परिपक्व काष्ठ रसनी ग्राम पहुंच मार्ग में सड़क किनारे डंप होना पाया गया कष्ठ के बेतरतीब सड़क किनारे पड़े होने की जानकारी आरंग डिपो में तैनात डिप्टी रेंजर लोकनाथ ध्रुव से चाही गई तो उनके द्वारा कथित टाल संचालक घनश्याम केशवानी की पैरवी करते हुए बताया गया कि जलाऊ लकड़ी टाल विक्रय करने का उसके पास लाइसेंस है जो अपने यहां से ही बनाया जाना बताया जबकि उसे टाल चलाने का लाइसेंस जारी किया गया था न कि परिपक्व बबूल गोले की बिक्री का लाइसेंस दिया गया जब उन्हें परिपक्व बबूल काष्ठ जो इमारती काष्ठ के उपयोग में लाए जाने की बात बताई गई तब उन्होंने बबूल वृक्ष को वन अधिनियम से मुक्त होने की बात कहकर मामले को टाल दिया जबकि जलाऊ और परिपक्व गोलों में काफी अंतर होता है फिर भी विभाग इस ओर कार्यवाही करने में असमर्थ है बताते चले कि बबूल काष्ठ आज सबसे कीमती काष्ठ के रूप में प्रचलित माना जा रहा है तथा इसके काष्ठ से दरवाजे की चौखट से लेकर कुर्सी,पलंग,टेबल, एव अन्य इमारती वस्तुएं निर्मित की जा रही है फिर भी प्रदेश का वन विभाग बबूल को इमारती काष्ठ न मानकर इसे काष्ठ माफ़ियाओं के लिए अवैध कटाई के लिए मुक्त छोड़ दिया है जिससे ऐसे काष्ठ माफियाओं के पौ बारह हो रहे है यही नही इसके मुक्त कटाई के आड़ में वन विभाग के मैदानी वन कर्मीयों की मिली भगत के चलते काष्ठ तस्करी का कारोबार भी फलफूल रहा है जिसमे बेशकीमती सागौन साल,शीशम, के काष्ठों की तस्करी भी इसके आड़ में अनवरत की जा रही है और वन कर्मीयों के अतिरिक्त आय अर्जित करने का स्त्रोत बन गया है इस प्रकार वन विभाग कर्मी अपने ही विभाग के राजस्व को लाखों का चूना लगा रहे है अब सवाल यह उठता है कि वन अधिनियम से मुक्त कर बबूल को जलाऊ लकड़ी के नाम पर प्रदेश भर में कब तक कटाई की खुली छूट दी जाएगी क्या इस प्रकार कटाई और बबूल की आड़ में अन्य इमारती काष्ठ की हेराफेरी कर काष्ठ माफियाओं को एक प्रकार से वन विभाग उन्हें प्रोत्साहित नही कर रहा