छग राज्य वन विकास निगम के प्रबन्ध संचालक राजेश गोवर्धन का.. अपनों पे करम...गैरों पे सितम ....
रायपुर छग राज्य वन विकास निगम के प्रबन्ध संचालक राजेश गोवर्धन की मनमानी अब अंतहीन हो चुकी है वे जैसा चाहे वैसा मनमानी करें सब ठीक है उन्हें ऊपर से कोई बोलने वाला है और न ही कोई कार्यवाही होना है इसलिए वे जैसा मर्जी होती वैसा करते आ रहे है वहां स्थिति यह हो गई कि निगम कर्मचारियों के दिलों में अब भय व्याप्त हो चुका है कि न जाने कब उनकी नौकरी दांव में लग जाए बात ज्यादा दिन पुरानी नही है हाल ही दैनिक वेतन भोगियों के सैकड़ों सुरक्षा श्रमिकों को उन्होंने निकालने का फरमान जारी कर दिया नया रायपुर से लेकर प्रदेश भर के सुरक्षा श्रमिकों के समक्ष रोजी रोटी की चिंता के साथ साथ लॉक डाउन में खाने पीने के लाले अलग से खड़ी हो गई नौकरी से पृथक किए जाने से तो जैसे श्रमिकों का दिन का चैन और रात की नींद काफूर हो गयी वही प्रबन्ध संचालक राजेश गोवर्धन साहब की मनमानी यही नही थमी उन्होंने अपने सपुत्र को भी ऊपर सैटिंग और जुगाड़ करके निगम में ही कुर्सी दिला दी तो कुछ दैनिक वेतन भोगी ड्रायवरों को निगम ड्रेस कोड जारी कर दिया जब कि वे रेग्युलर भी नही है वही अपने चहेते बाबू को तीन माह से रिटायरमेंट के पश्चात नियमित कार्य संपादित करवाया जा रहा है तो कुछ स्वयं की निजी भूमि में निगम कर्मियों से ही सारे कार्य सम्पन्न कराए जा रहे है वेतन निगम से एव कार्य निजी यह कैसी कार्य शैली है जो उनके इस कृत्य पर रोक लगाए एक तरह से उनके सन्दर्भ में यह कहा जा रहा है कि भाड़ में जाए जनता अपना काम बनता की तर्ज पर उन्होंने एक छत्र राज्य स्थापित कर निगम के सारे नियम कनुन दर किनार कर के केवल अपने और चहेतों पर कृपा दृष्टि बनाए रखना और आर्थिक लाभ पहुंचाना उनका मूल कर्तव्य बन गया भले निगम के कर्मचारी जिए या मरे निगम बचे या डूबे इससे इन्हें कोई फर्क नही पड़ता इसलिए ही तो प्रबन्ध संचालक राजेश गोवर्धन साहब के ऊपर यह कथन सटीक बैठती है कि अपनो पे करम और गैरों पे सितम करना अब यह सितम दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के लिए गले की फांस बन चुकी है उनकी रात और दिन ईश्वर से प्रार्थना करने में गुजर रही है कि लंबे समय से निगम में सुरक्षा कर्मचारियों के रूप में तैनात होने के बाद यकायक उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ रहा है बताया जाता है कि इनमे अधिकांश दैनिक वेतन भोगी कर्मचारीयों को लगभग चार साल से लेकर अट्ठारह से बीस साल तक निगम में अपनी सेवाएं दे चुके है उनका नियमितीकरण होना तो दूर केवल वे निगम अधिकारियों के हाथों की कठपुतली बनकर रह गए आर्थिक शोषण तो लगातार उनका होता ही रहा है छब्बीस दिन की पगार के स्थान पर 24 दिन तथा अनावश्यक दंडात्मक स्वरूप भी राशि काट ली जाती है एक प्रकार से इन्हें लगभग माह भर के कार्य दिवस का वेतन भुगतान मात्र बीस अथवा बाइस दिन का ही प्राप्त होता है वह भी कभी कभी महीनों इनके वेतन को रोक लिया जाता है जिन्हें विवश होकर कार्य करना इसलिए पड़ता है कि आज नही तो कल पारिश्रमिक उन्हें प्राप्त होगा नया रायपुर के सुरक्षा श्रमिक जिनकी संख्या सबसे ज्यादा थी उन्हें तो बकायदा आक्सिजोन में कुशल अकुशल श्रमिक के तौर पर कार्य मे ले लिए गया इस पर भी वेतन में कांटा मारी कर लाखों के वारे न्यारे किए गए नया रायपुर से सुरक्षा श्रमिक के तौर पर एवं आक्सिजोन में मजदूर के रूप में इनका दोहरा आर्थिक शोषण हुआ उक्त तारतम्य में शासन द्वारा समस्त कर्मचारियों का भुगतान बैंकों के खाते में किया जाना सुनिश्चित है इसके बावजूद परिक्षेत्राधिकारी उक्ताशय का पालन सुचारू रूप से नही कर रहे है तथा समस्त वर्षा आधारित सागौन वृक्षारोपण प्लांटेशन,बांस,नीलगिरी, डिपाजिट,हरियर छग कोष,खदानी ब्लॉक वृक्षारोपण,सहित अन्य क्षेत्रों में कार्यरत श्रमिकों का भुगतान बैंक से किए जाने के आदेश दिए गए है इस संबन्ध में किसी व्यक्ति द्वारा श्रमिकों का ई भुगतान न किए जाने पर करोड़ों के भ्रष्टाचार की आशंका व्यक्त की गई थी जिसे मुख्यालय द्वारा संज्ञान में लेकर 04/04/2018/को एक पत्र समस्त वन मण्डल कार्यालय को जारी कर श्रमिकों के नाम पता उम्र ग्राम जिला प्रमाणक विवरणी मंगाई गई थी उसके बावजूद भी ई पद्धति से नाममात्र भुगतान जारी किया जाता रहा है वही कुछ परिक्षेत्राधिकारी अपने रिश्तेदारों मित्रों के नाम भी सुरक्षा श्रमिक में जोड़ कर आर्थिक गड़बड़ी और घपलेबाजी से नही चूकते यही नही मुख्यालय नया रायपुर द्वारा पुनः 05/02/2019/को पत्र जारी करते हुए परिक्षेत्राधिकारीयो से मजदूरी भुगतान ई अथवा बैंक के द्वारा किए जाने का पत्र जारी किया गया था तथा यह भी निर्देश दिए गए थे कि जिन श्रमिकों के बैंक खाता नही है उनके बैक खाता खुलवाए जाएं तथा उसकी सूची भी पांच दिवस के भीतर प्रधान कार्यालय को प्रेषित करने के निर्देश देकर श्रमिक खाताधारकों की सूची मंगवाई गई थी फिर भी ढाक के वही तीन पात वाली स्थिति निर्मित रही तथा आज भी समस्त मंडल कार्यालयों में पूर्ववत श्रमिकों का भुगतान मैन्यूवली किया जा रहा है वर्षों से छग वन विकास निगम के अंतर्गत कार्यरत श्रमिकों को अकस्मात नौकरी से पृथक करना भी सुनियोजित माना जा रहा है क्योंकि कोरोना संक्रमण बीमारी की आड़ में छंटनी करने से इन श्रमिकों के समक्ष रोजी रोटी की समस्या आएगी तब कुछ श्रमिकों को लेकर बाकियों को सेवा से पृथक कर उनसे मजदूरी कार्य लिया जाएगा तथा उनसे कलेक्टर दर से कम राशि तय कर उनसे कार्य संपन्न करवाया जाएगा श्रमिकों के समक्ष सबसे बड़ी समस्या यह होगी कि उनके हाथ मे काम नही होगा तथा ऐसी विकट परिस्थितियों में उनके समक्ष निगम कर्मचारियों से समझौता करने के अलावा कोई दूसरा चारा भी नही होगा इस तरह इनका आर्थिक शोषण स्वभाविक होगा अभी स्टेडियम के समक्ष होने वाले प्लांटेशन में यही युक्ति अपनाई जा रही है जिसमे मजदूरों से एक दिन में चालीस गड्ढे खनन करने की शर्त पर कुछ सुरक्षा श्रमिकों को कार्य मे रख लिया गया है जबकि बताया जाता है कि प्रति मजदूर डेढ़ बाई डेढ़ का गड्ढा खनन बीस से पच्चीस तक ही कर सकता है परन्तु दो दिन का कार्य एक दिन में ही करने की शर्त पर नया रायपुर के आसपास के ग्रामीणों को कार्य पर वापिस बुलवाया गया है ये बात अलग है कि स्टेडियम के समीप बांध के बगल सड़क किनारे बाड़ी नुमा इलाके में जेसीबी से सैकड़ों की तादाद में वृक्षारोपण हेतु गड्ढा खनन करवा लिया गया अब इस कार्य को श्रमिकों द्वारा कराया जाना दर्शा कर भुगतान में बड़ा खेल खेला जाएगा दूसरी बात यह भी कही जा रही है कि पाना बरस परियोजना मण्डल के अंतर्गत आने वाले नर्सरी रोपणी से 1068 शिशु पौधे क्रय करके मंगाए गए सवाल उठाया जा रहा है कि जब तूता नर्सरी में ही बड़ी भूमि है तब वहां नर्सरी अथवा रोपणी क्यो स्थापित नही की जा रही है ? पाना बरस परियोजना मण्डल अंतर्गत रोपणी से ही पौधे क्रय करने की क्या आवश्यकता ? इस संदर्भ में जानकारों का कथन है कि अन्य स्थान से पौधे परिवहन करने पर बड़ी गड़बड़ी और भ्रष्टाचार को अंजाम सहजता से दिया जा सकता है यही वजह है कि संकरा एव तूता नर्सरी से पौधे क्रय न करके पानाबरस परियोजना मण्डल के नर्सरी से पौधे क्रय किए गए वह तूता नर्सरी जिसे बन्द करने के नाम पर वर्तमान में रुटसूट पद्धति से पौधे रोपे गए है जिनके तैयार होने में ही दो से तीन माह लग जाएंगे जिसका उपयोग कहां किया जाएगा यह सवालों के गर्त में छुपा हुआ है,बहरहाल यही परिस्थिति प्रदेश भर के श्रमिकों के साथ घटित हो रहा है आरंग परिक्षेत्र अंतर्गत लोहारडीह ग्राम के एक युवक को संविदा नियुक्ति में लिया गया था उसके बारे में बताया गया है कि कथित सुरक्षा श्रमिक के पिता नियमित कर्मचारी थे भालू के हमले में उनकी मृत्यु हो गई थी जिसके एवज में उसे सुरक्षा श्रमिक के रूप में संविदा नियुक्ति दी गई जिसे आज पर्यंत नियमितीकरण नही किया गया वही प्रधान कार्यालय में फरवरी 2020 में सेवानिवृत्त हुए कोठारे बाबू को तीन माह से एम डी श्री राजेश गोवर्धन अपने साथ रखकर कार्य सम्पन्न करवा रहे है यही नही उनके आवागमन के लिए बाकायदा वाहन की व्यवस्था भी कर रखी है जो निगम के राशि से ईधन आपूर्ति सहित उन्हें तीन माह से अनवरत भुगतान किया जा रहा है तथा उनकी सेवाएं निर्बाध रूप से ली जा रही है जबकि श्रमिको को कोरोना संकट काल मे भुगतान एव अन्य कटौती के नाम पर वर्षों से कार्यरत सुरक्षा श्रमिको को कार्यों से पृथक किया जा रहा है छग वन विकास निगम के प्रबन्ध संचालक श्री राजेश गोवर्धन की ऐसी दोहरी नीति क्यो? वही उनकी मनमानी का किस्सा यही समाप्त नही होता उन्होंने अपने अनियमित दैनिक वेतन भोगी ड्राइवरों को खाकी ड्रेस जारी कर दिया जबकि नियमानुसार दैनिक वेतन भोगी कर्मियों को ड्रेस जारी करने का कोई भी नियम नही है परन्तु राजेश गोवर्धन साहब के कार्यकाल में वह सब कुछ हो रहा है यहां तक राजसात की हुई गाड़ी का भी परिचालन हो रहा है जिसके न ही कागजात है न अन्य कोई दस्तावेज केवल निगम उसे अपने कार्यों में जोत रहा है या राजेश गोवर्धन साहब अपने निजी कार्यों में इसका उपयोग कर रहे है जिसमे भी दैनिक वेतन भोगी ड्रायवर नियुक्त है उसे भी ड्रेस दिया गया है जो वन नियम में नही है यह तो उनका अपनों पर करम करने का स्टाइल है यह करम उन पर ही निस्वार्थ भाव से बहता है जिनसे उन्हें कार्य निकलना होता है इसी करम की बारिश से उन्होंने अब अपने सुपुत्र को भी सराबोर कर दिया अगस्त माह 2020 को सेवानिवृत होने वाले राजेश गोवर्धन ने बड़े सुनियोजित तरीके से अपने पुत्र को रेग्युलर फारेस्ट से निगम में मुख्यालय पर लाकर बैठा दिया उसके बारे में यह चर्चा बड़े जोरों पर है कि न ही उनके पुत्र द्वारा स्थानीय सीजी यूपीएससी या अन्य सरकारी एजेंसी से किसी प्रकार से चयन न कर के डायरेक्ट भर्ती वह भी एस डी ओ के पद पर लिया गया जैसा कि देखा गया है कि चयन पश्चात चाहे रेंजर हो या एसडीओ, डीएफओ हो उन्हें बकायदा ट्रेनिंग दी जाती है परन्तु ऐसे किसी भी प्रक्रिया से उनके सुपुत्र को गुजरना नही पड़ा ऐसी चर्चा आम है अब यह कृपा कहां से बरसी तो बताते चले कि यह सब मेहरबानी वन विभाग के बड़े साहब जो अपनी ऑफिस को इंद्रलोक की भांति सजाकर रखते है और चारो वेदों के ज्ञाता है तथा प्रशासनिक स्तर पर फैले आभा मंडल के दिव्य दृष्टि से यह सब संभव हो सका है बगैर किसी ट्रेनिंग के अच्छा पद का मिलना किसी चमत्कार से कम नही है इसके लिए गोवर्धन साहब ने क्या क्या पापड़ बेले ये तो वही जाने परन्तु उन्होंने अपने चला चली की बेला में सुपुत्र को बंबू मिशन विक्रय केंद्र खुलवा दिया जिसमे लाखों की राशि जारी करवा दी ये बात अलग है कि उक्त बंबू मिशन विक्रय केंद्र पर यदाकदा कोई डिप्टी मैडम बैठ जाती है परन्तु अभी तो गोवर्धन साहब ने अपने पुत्र को मुख्यालय निगम में ही अलग कमरा देकर उन्हें सर्व सुविधा जैसे आवागमन हेतु चार पहिया वाहन,एयर कंडीशन ऑफिस,आकर्षक वेतनमान, और विभाग के ए बी सी डी की भी ट्रेनिंग दे रहे है संभवत यह भी हो सकता है कि अगस्त माह के पूर्व ही वे अपने पुत्र को किसी अच्छे मलाईदार पोस्ट में उनकी पदोन्नति करवा दे अब इसे फर्जी वाड़ा माने तो ये हमारी गलती नही ये आप पाठकों को अपने विवेक पर निर्भर करता है कि इसमें कितनी सत्यता है और कितनी फर्जीवाड़ा ? और हां ..जो लंबे समय से अपनी पदोन्नति की बाट जोह रहे है उन्हें अभी और समय इन्तेजार करना पड़ सकता है अब वे अपने हाथ मले या चेहरा मले इससे कोई फर्क नही पड़ता फर्क पड़ता है जब इधर मजदूर भूखे रहे या खाली पेट रहे इससे इन्हें कोई फर्क नही पड़ता क्योंकि इनका राशन पानी तो नवीन भवन में पहले ही पहुंच चुका है गृह प्रवेश के पूर्व बकायदा रंग रोगन लिपाई पुताई कर आकर्षक स्वरूप प्रदान किया जा रहा है वह भी निगम के ही कर्मचारियों से निगम के ही पैसों से यानी हींग लगे न फिटकरी...रंग भी चोखा आए... अब साहब आप भले इसे जो कहना या समझना है कहे फिर समझे...मगर हम तो इसे यही कहेंगे,,,अपनों पे करम,,, गैरों पे सितम,,,,,,