हे ईश्वर,कोरोना को कृपया वापस बुलाओ
रायपुर कोरोना वायरस को लेकर आज संपूर्ण मानव जगत व्यथित है इससे बचने और लड़ने के अनेक उपाय निकाल रहा है परन्तु इस वैश्विक महामारी की कोई भी जीवन रक्षक औषधि का निर्माण नही हो पाया, जिसके चलते मानव मस्तिष्क को नित नए आते हृदय विदारक आंकड़ों ने झकझोर कर रख दिया और सभी क्षेत्र के लोगों को यह विचार करने विवश कर दिया कि मानव जीवन का भविष्य क्या होगा ? समस्त विधाओं में दक्ष विचारकों ने अपने अपने स्तर पर कोरोना जैसी वैश्विक बीमारी की व्याख्या अपने शब्दों में करना प्रारंभ कर दिया तथा अपनी अभिव्यक्ति को रेखांकित करते हुए इस पर अपनी चिंतन व्यक्त की जाने लगी आइए ! महामारी कोरोना को लेकर छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम के कार्यकारी संचालक एव सी सी एफ श्री अनूप कुमार विश्वास साहब ने अपने विचार कोरोना संक्रमण को लेकर कविता के रूप में लिखी है जो मानव जीवन की विडंबना को लेकर अव्यवस्थित सामाजिक प्राकृतिक से दो चार होते मानव जीवन के गिरते मूल्यों को लेकर चिंता व्यक्त की है इस पर एक नज़र डालें।
इस वायरस को क्या कहें।
कोरोना या वैश्विक त्रास।।
जो संक्रमण व मौतों के कहर से।
धरती कर लिया ग्रास।।
इतना सूक्ष्म जो दिखता भी नही।
फिर भी कितना ताकतवर।
उथल पुथल कर दिया दुनियां।
मच दिया हाहाकार।।
एक दूसरे दूर खड़े हाथ मिलाना मना।
अलग अलग रहने में मजबूर।
अपनों को बचाना।।
डर के मारे घर मे बन्द सब।
रास्ते गलियां सब सुनसान।।
हाथ धो धो कर घर मे भी।
होते रहे सब परेशान।।
पुलिस,प्रशासन, डॉक्टर नर्स, मंत्री,।
विश्व नेता ताबड़तोड़।।
देश वासियों को बचाने में
पड़ गए कमजोर।।
एशिया,यूरोप,अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया,।
अफ्रीका में अकेले मात दिया।
बंदूके मिसाइल परमाणु बम भी।
कोरोना को मार न पाया।।
देखते ही देखते दो से चार ,चार से सोलह।
लाखो लोग बीमार हुए।।
वैज्ञानिक सब भौचक।
कोई वैक्सीन बना न पाए
कोरोना वायरस मरीजों को।
श्वास कष्ट से तड़पाते रहे।
डॉक्टर नर्स बिन दवाई के।
खामोश देखते रहे।।
चारो ओर मौत का तांडव।
हाय मानव कितने असहाय।।
त्राहिमाम त्राहिमाम चीखते रहे।
पर कोरोना से बच न पाये।।
देख लोगों के कष्ट हे नाथ।
तुम बहुत याद आए।।
हे ईश्वर तुम्हारी लीला ।
कौन समझ पाए।।
तुम्हारी इच्छा से
क्रियाशील यह अदृश्य वायरस।
बिछाए
तुम्हारा ही सृष्टि श्रेष्ठ।
हजारों मनुष्यों के लाश।।
फिर भी कोरोना सौ में से।
दो चार को ही मार पाए।।
महामारी के बावजूद हे प्रभु।
आप लाखों जान बचाए।।
हे जगदीश्वर
आप क्यो चाहे ये संहार।।
कोरोना से तोड़ना था क्या।
मनुष्यों का अहंकार।।
मनुष्यों को क्यों कर दिया आज।
इतना बेबस इतना लाचार।।
जन्म दाता माता पिता का भी।
कर न सके अंतिम संस्कार।।
हे करुणामय, कोरोना को कृपया वापस बुलाओ।
मनुष्य गलतियां भी करे तो।
तुम इतना मत रुलाओ।।
श्री अनूप कुमार विश्वास की कलम से