78 की उम्र में जिन्नत बेगम ने रखा रोजा, इबादत के साथ करती है नियमित घरेलू कार्य
फॉरेस्ट क्राइम
रायपुर रोज़ेदारी में उम्र का एक बहुत बड़ा महत्व है जहां छोटे बच्चे जिनकी उम्र 3 से 6 साल तक होने पर उनके द्वारा दिन भर भूखे प्यासे रह कर अल्लाह की इबादत करना बहुत मायने रखता है वही बढ़ती उम्र में भी एज फैक्टर से अनेक व्याधि ग्रस्त हो कर रोजे रखना बड़ी मुश्किल माना जाता है यही वजह है कि कई 60 उम्र पार किए वृद्ध ब्लड प्रेशर मधुमेह एव निःशक्तता के चलते अल्लाह से क्षमा याचना और तौबा कर रोजे रख नही पाते परन्तु रायपुर शहर के नूरानी मस्जिद रोड़ राजातालाब निवासी मरहूम हाजी सुलैमान ईरानी शायर की बेवा जिन्नत बेगम उम्र 78 की उम्र में भी रमज़ान शरीफ के पूरे 30 रोज़े रख पांच फ़र्ज़ों में से एक महत्वपूर्ण फ़र्ज़ रोज़े रख कर पूरा कर रही है यही नही वह घरेलू नियमित कार्यों को भी बखूबी अंजाम देकर पांचों वक्त की नमाज़ भी पूरी शिद्दत के साथ पढ़ रही है हालांकि उनके सात बेटे और तीन बेटियां है जो उन्हें उम्र के उक्त नाजुक पड़ाव में रोज़े न रखने की भी इल्तेज़ा करते है परन्तु श्रीमती जिन्नत बेगम का कथन है कि जब तक शरीर मे प्राण है वे यथा संभव अल्लाह के पांच फ़र्ज़ों को जिसमे रोज़ा, नमाज़, फितरा ज़कात, करती रहेगी हज के बारे मे उनका कथन है कि हज के लिए भी प्रयास किया था बकायदा पासपोर्ट भी बनवाए थे परन्तु शायद वहां से बुलावा नही आया और वे हज के लिए नही जा पाई श्रीमती जिन्नत बेगम से यह पूछने पर कि उम्र के इस पढ़ाव में जब लोग दवा गोली पर निर्भर हो जाते है तथा शारीरिक कमजोरी के चलते रोज़े नही रख पाते ऐसे में आपको कोई परेशानी नही होती इस बारे में उनका कहना है कि उन्हें भी ब्लड प्रेशर की बीमारी है जिसका वे दवाई भी लेती है परन्तु दृढ़ता के साथ यह कहते भी नही चूकती कि ये शरीर मे जान भी अल्लाह पाक की ही दी हुई नेमत है इसके लिए उनकी इबादत करते हुए जान भी निकल जाए तो कोई गम नही वैसे भी रोजे रखने से शरीर की बहुत सी बीमारी स्वयं नष्ट हो जाती है फिर रोजे रखने से परहेज कैसा ? आपका रूटीन रोजे में किस प्रकार रहता है ? इस बारे में श्रीमती जिन्नत बेगम का कथन है कि फ़ज़र में उठ कर सेहरी के बाद फ़ज़र नमाज अदा करके दिन भर घर के छोटे मोटे कार्य वे नियमित रूप से निपटाती है तथा दोपहर पश्चात जोहर से लेकर अस्र और मगरिब तक नमाज़ पढ़ना कुरान का नियमित पाठ करते रहना उनकी दिनचर्या में शुमार है इस उम्र में आपको रोजे रखने में किसी प्रकार की कोई शारीरिक कमजोरी भूख प्यास आदि के लगने के संदर्भ में पूछे जाने पर उनका कथन है कि ऐसी कोई समस्या मालूम नही पड़ती केवल शारीरिक एवं मानसिक रूप से आपको रोजे रखने का एक जुनून होना चाहिए बाकी सब अल्लाह की मर्जी पर छोड़ देना चाहिए ,,,बेशक वही सब को हिम्मत हौसला देने वाला है,, उम्र के इस नाजुक पड़ाव में भी उनके द्वारा अल्लाह द्वारा दी हुई पांच नेमतों के फ़राएज़ पूरा करने पर उनके जज़्बे को सलाम और दुआ है कि अल्लाह पाक अपने उन बंदों को जिन्होंने अपनी बीमारी और निःशक्तता के बावजूद रब की इबादत करने में ज़रा सी भी कोताही नही बरती अल्लाह पाक ऐसे ही उन्हें हिम्मत ताक़त और कुव्वत अता करे ,,आमीन